Saturday 8 August, 2009

बीमार-परेशान मीडियाकर्मी

मीडिया स्टडीज ग्रुप द्वारा किया गया सर्वे
सर्वे में 83.67 फीसदी पुरुष व 16.33 महिलाओं ने लिया भाग

बीमारी प्रतिशत
मधुमेह 13.84
रीढ़ की हड्डी १४.34
Nदय एवं रक्तचाप १३.भ्0
दंत रोग 11.39
उदर रोग 13.08
नेत्र रोग 11.81
थकान और सिरदर्द 2.10

दुनिया भर में लोगों को स्वास्थय के बारे में अपनी खबरों व लेखों के जरिए जागरूक करने वाले मीडियाकर्मी खुद कई बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। इन्हें ज्यादातर रीढ़ की हड्डी, रक्त चाप व मधुमेह जैसी बीमारियां होती हैं। मीडिया स्टडीज गु्रप द्वारा पत्रकारों पर किए गए एक सवेü के अनुसार 14.34 फीसदी पत्रकारों को रीढ़ की हड्डी एवं अन्य हिस्सों में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है जबकि 13.81 फीसदी मीडियाकर्मी मधुमेह से पीçड़त हैं। 4.41 फीसदी जर्नलिस्ट पिछले पांच साल से अस्वस्थ महसूस कर रहे हैं जबकि 6.62 फीसदी की पिछले तीन साल से तबियत अच्छी नहीं है। इस सवेüक्षण में 83.67 फीसदी पुरुष व 16.33 फीसदी महिलाएं हैं शामिल थीं।
यह सवेü 13 जुलाई 2008 से 13 जून 2009 के बीच किया गया। इसके अनुसार 13.भ्0 प्रतिशत मीडियाकर्मी Nदय एवं रक्तचाप संबंधी रोगों से पीçड़त हैं जबकि दंत रोग से पीçड़त मीडियाकर्मियों की संया 11.39 फीसदी है। 13.08 प्रतिशत मीडियाकर्मी उदर रोगों से पीçड़त हैं। 11.81 फीसदी नेत्र रोग तथा 2.10 प्रतिशत मीडियावाले कमजोरी थकान और सिरदर्द जैसी समस्याओं से परेशान हैं। 48.06 प्रतिशत मीडियाकर्मियों का यह कहना है कि उन्हें उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है जबकि भ्1.94 फीसदी मीडियाकर्मियों को इलाज के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।
खाने-पीने का समय नहीं
61.27 प्रतिशत मीडियाकर्मियों के खाने पीने का कोई निर्धारित समय नहीं है जबकि 17.61 फीसदी मीडियाकर्मियों ने अपने भोजन का समय निर्धारित कर रखा है।
नौकरी के लिए मारामारी
अध्ययन के अनुसार भ्4.17 फीसदी मीडियाकर्मी अपनी नौकरी के मामले में असुरक्षा महसूस करते हैं लेकिन 4भ्.82 प्रतिशत अपनी नौकरी को सुरक्षित मानते हैं। 12.भ्9 फीसदी मीडियाकर्मियों ने अब तक छह या इससे अधिक जगहों पर अपनी सेवाएं दी हैं जबकि 66.43 प्रतिशत मीडियावाले दो से पांच नौकरियां बदल चुके हैं। एक ही संस्थान या संगठन में काम करने वालों का प्रतिशत 28.8 है।
घर से ऑफिस की दूरी
भ्6.2भ् प्रतिशत मीडियाकर्मी 10 किमी या इससे अधिक दूरी तय कर अपने कार्यालय पहुंचते हैं जबकि 21.भ्3 फीसदी मीडियाकर्मियों को इसके लिए भ्-10 कि मी तक की दूरी तय करनी पड़ती है। 1-भ् किमी तक की दूरी तय करने वालों का प्रतिशत 10.06 है जबकि कार्यालय आने के लिए एक से भी कम किमी की दूरी तय करने वालों का प्रतिशत 4.17 है। 16.32 फीसदी मीडियाकर्मी अपने दतर पहुंचने के लिए सिर्फ मेट्रो का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि 11.भ्8 फीसदी को मेट्रो के अलावा दूसरे परिवहन साधनों का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। कार से दतर पहुंचने वालों का प्रतिशत 13.16 है जबकि 18.42 फीसदी मीडियाकर्मी स्कूटर या मोटरसाइकिल से कार्यालय पहुंचते हैं। 13.68 फीसदी मीडियाकर्मी तिपहिए से दतर पहुंचते हैं जबकि 10 प्रतिशत बस के जरिए कार्यालय पहुंचते हैं।
काम करने का समय
दिन की पाली में काम करने वाले मीडियाकर्मियों की संया भ्2.3भ् फीसदी है जबकि 21.76 प्रतिशत शाम के समय काम करते हैं। 14.71 फीसदी मीडियाकर्मियों का काम रात के समय निश्चित होता है और 11.18 फीसदी सुबह की पाली में अपने काम को अंजाम देते हैं।
पसंदीदा मीडिया क्षेत्र
सवेüक्षण के अनुसार 61.63 फीसदी मीडियाकर्मियों का पसंदीदा क्षेत्र प्रिंट मीडिया है जबकि टेलीविजन 22.09 प्रतिशत की पसंद है। 4.6भ् प्रतिशत मीडियाकर्मी खुद को किसी समाचार एजेंसी में काम करने का इच्छुक बताते हैं।
कितने खुश-कितने नाखुश
64..४९ प्रतिशत मीडियाकर्मी अपने काम से संतुष्ट हैं जबकि 4भ्.4भ् प्रतिशत असंतुष्ट. 6भ्.भ्1 फीसदी मीडियाकर्मियों को प्रतिदिन 8 घंटे से अधिक समय तक काम करना पड़ता है जबकि 23.6भ् फीसदी ने कहा कि उनसे 8 घंटे ही काम लिया जाता है। 12.84 प्रतिशत मीडियाकर्मियों ने कहा कि उन्हें 8 घंटे से भी कम समय तक काम करना पड़ता है।
साप्ताहिक अवकाश
71.भ्3 फीसदी मीडियाकर्मियों को एक दिन का साप्ताहिक अवकाश मिलता है और 17.36 प्रतिशत को दो दिन का साप्ताहिक अवकाश मिलता है जबकि 11.11 प्रतिशत मीडियाकर्मी ऐसे हैं जिन्हें कोई अवकाश ही नहीं मिलता।

Thursday 4 June, 2009

राजीव जी के यहां की रद्दी

शानदार, अतुलनीय, अविस्मरणीय ....और न जाने क्या-क्या कहा जा सकता है राजीव जैन साहब के अखबार प्रेम को। करीब ढाई साल के 613 क्वंटल अखबार जिसमें जयपुर से प्रकाशित कई अखबार भी शामिल हैं, अपनी अंतिम यात्रा पर चले गए। मैं वहीं था जब यह अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चल रही थी। दुख तो मुझे भी हो रहा था कि हर एक अखबार एक-एक पन्ने को बनाने में हमारी बिरादरी की कितनी मेहनत, खून व पसीना शामिल होता है। राजीव जी द्वारा ये रद्दी निकालने के पीछे का प्रायोजन ये नहीं कि वे घर बदल रहे थे, बल्कि कुछ व्यçक्तगत कारण है। रुपए-पैसे का मोह भी नहीं। मैंने देखा अगर उन्हें कोई इतना बड़ा घर मिलता जिसमें वे हमारी बिरादरी की मेहनत से उगाए गए पेड़ों को स्टोर कर सकते तो वे उसे वहां भी ले जाते। खैर दिन बुधवार को उन्होंने मुझे सवेरे 10.30 के आसपास बुलाया उसके बाद से 4.30 बजे तक हम लोग सिर्फ उसी रद्दी के बारे में ही बतियाते रहे। खाना भी नहीं खाया था सवेरे। सिर्फ पानी व पारले-जी से काम चल रहा था। मैं तो श्वेतधूम्र दंडिका के सेवन से बीच-बीच में अपने आप को रिचार्ज कर ले रहा था। पर वे तो शाकाहारी हैं ना। मैंने उन अखबारों के कुछ पन्ने पलटे तो सबसे पहले हरीशचंद्र सिंह जी एक स्टोरी देखी। हिंदी में थी और बहुत ही शानदार। सिंह सर आजकल जयपुर के एक अंग्रेजी अखबार में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मुझे लगा और राजीव जी भी यही बोल रहे थे कि अगर दिन एक्सक्लूसिव स्टोरीज को पत्रकारिता में आ रहे नए बीजों में खाद के रूप में डाला जाए तो बहुत ही बेहतर होगा। अगर वही रद्दी इस समय के रिपोर्टर को दे दी जाए तो उसमें से बहुत कुछ सीाने को भी मिलेगा। खैर जो चला गया....उसके लिए कैसा पछताना....बस यही मनाऊंगा कि राजीव को अगली बार इतनी रद्दी बेचनी न पड़े। तब तक उनका अपना एक घर हो जिसमें एक बेसमेंट हो और वो वहां अपने अखबारों की लाइबे्ररी बना सकें। ......आमीन

Friday 29 May, 2009

Sometimes you cannot decide?


Everyone faces different types of condition in his/her life. Sometimes they succeed sometimes not, but what goes on? the answer is life. From dawn to dusk.....I still remember my those days when I was doing my masters in journalism from Bhopal. The entire budding journalist group had lot of energy and so on. In the last semester we all worried about our job, that what will we do in our next future. Well except that we have a moral support given by our HOD Mr. PP Singh. He always use to say that do you work simply and perfectly whenever you get a chance to prove yourself. We all worked hard and almost all of us (25 students) got job. Now many of them are married and completing thier responsibilites perfectly in personal as well as profession life. Some of us are getting handsome amount as salary package. I also started working from Bhopal then joined Lokmat Times in Aurangabad, then CNBC commodities for few days only, after that 4 months blank (no job) after that I have got job in Agra in DLA (english daily tabloid) . Now working in editoral department in a sister concern of Rajasthan Patrika, Jaipur. I have faced different types of people, condition, places many times succeeded in solving every type  of trouble but now today when I am in Jaipur i am unable to pull out myself from lots a dilemmatic conditions. Most of them are personal. Well I dont want any suggestion from anybody .....except that ...i dont know why i am writing these things on such freaky internet creature like blogs.....this is what when u cannot decide what to do? 

Thursday 28 May, 2009

कुछ उम्मीद कर सकते हैं क्या?

इस बार मंत्रिमंडल में बहुत से युवा नेताओं को मौका मिला है। उनके साथ अनुभवी व राजनीति के पुराने दिग्गज साथी भी है। राहुल की नई रणनीति से भाजपा इस चुनाव में धराशायी तो हो ही गई व आश्चर्यचकित भी है। इसी तरह क्या अब आम जनता खासतौर से युवावर्ग इस नई युवा राजनीतिक टीम से कुछ उम्मीद कर सकती है क्या? क्या राहुल, अगाथा, सचिन, जितिन व उनके जैसे और सभी युवा नेता हमारे पुराने नेताओं को देश के विकास के लिए नई तकनीकि और शिक्षा संस्थानों के बारे में सलाह देकर उनका क्रियान्वन करवा पाएंगे। इस बार सरकार में बहुमत एक ही पार्टी की है इसलिए हो सकता है वरिष्ठ नेता अपने युवा साथियों की बात मानें। ये भी हो सकता है कि हमारी नई टीम उन्हें अपनी बातें मनवा सकने में सफलता हासिल करे। मेरे मन में इस तरह के कई प्रश्न हैं पर उन्हें मैं सही भाषा में पिरोकर हमलोगों के इस माध्यम से प्रेषित नहीं कर पा रहा हूं। आप सभी ब्लॉगर बंधुओं से निवेदन है कि अगर कोई माध्यम हो जिससे की युवा मन के सवाल इन युवा नेताओं के पास जा सके तो कृपया इन्हें आगे बढ़ाए...

अन्ना आईला



वरिष्ठ सहयोगी शिशिर शरण राही बुधवार को बिहार से लौट कर आए हैं। उनके जयपुर में प्रवेश करते ही चक्रवात अन्ना आईला का कुछ अंश भी गया है। पूरे शहर में गर्मी का प्रकोप दिन भर रहा लेकिन उनके ऑफिस में घुसते ही मौसम सुहाना हो गया। रात तक तो बारिश भी हो गई। ठंडी हवाएं भी चलने लगी। बिजली कड़कने लगी। रोज ऑफिस से जल्दी जाने वाले अन्ना (शिशिर जी का ऑफिशियल नाम) बारिश की वजह से ऑफिस में ही रुक गए। पूरे समय वर्तमान राजनीति की चर्चा करने वाले शिशिर जी आज अगाथा संगमा का बखान नहीं करते थक रहे थे। मेरी शादी की बात तक कर डाली अगाथा के साथ। खैर जानें दीजिए ये भी मजाक-मजाक में कुछ भी कह डालते हैं। पूरे ऑफिस में उनके आने से एक नई ऊर्जा रौनक फैली हुई थी।

Sunday 17 May, 2009

आगंतुक का प्रणाम

सभी ब्लॉग प्रेमियों को ऋचीक मिश्रा का प्रणाम। करीब दो साल पहले ब्लॉग पर अपनी कुछ हार्ड बाईलाइन  ख़बरों  को चिपका कर दुनिया भर में लोगों को पढ़ाने का चस्का लगा था। तब आगरा के अंगे्रजी समाचार पत्र में रिपोüटर था। कुछ खबरें मैंने अपने ब्लॉग पर पोस्ट भी की। लोगों ने तारीफ भी की और कुछ के आलोचना का शिकार भी होना पड़ा। अब जयपुर के एक तेजस्वी अखबार का हिस्सा हूं। अंगे्रजी को मोह तो खत्म नहीं हुआ है पर हिंदी प्रेम जरूर जाग गया। इसलिए आप सभी हिंदी ब्लॉग पर लिखने वाले मान्यवरों के जमात में शामिल हो रहा हूं। जिस तरह किसी घर में किसी नवजात के आने से लोगों के चेहरे पर खुशी फैल जाती है उसी तरह उम्मीद है कि इस समुदाय में शामिल होने पर आप सभी को खुशी होगी।

Saturday 7 February, 2009

true journalism

Geared sale of cars vs RTO registration
High sale, low registration
Richeek MishraAgra. You can see lakh of wheels speeding on the roads and occasionly in a beautiful showrooms but you might not find them in the register of Regional Transport Office (RTO). The increasing number of vehicles occupy the city roads but RTO fails to register them properly.The registration charges in the Uttar Pradesh are more than neighbouring states. RTO charges 2.5 percent as tax for petrol vehicles and 5 percent of diesel vehicles. Suppose if any one purchase petrol car worth 20 lakh, he has to pay 50 thousand as a tax in RTO. According to RTO around 10123 cars including small, premium and luxury are running in the city of Taj. Small cars rule the road of the city with score of 7774. Second position is occupied by premium class with 1356. Luxury cars (imported or assembled in India) are driven to the third position with a handful number of 19.Customers of premium and luxury class range avoid paying taxes and levis in UP. Price range of such cars starts from Rs. 7 lakh onwards. They prefer neighbouring states for registration to save the tax money. According to the dealers Maruti Suzuki has sold around 8697 cars from 2005 till now while RTO has registered 6206 cars in this period. Similarly, Hyundai has sold 3559 cars in the same period and RTO has registered only 2586 cars. Brand wise, RTO has registered 88 Honda Civic and 37 Accord. In contrast the data differs company wise as RTO has registered 2 Civic and 5 Accord. Contradictory data of vehicles in the RTO is astonishing. The data is similar to all other premium and luxury class cars.Talking to DLA am, dealers of various car brands said that the purchasing power of customer is increasing, because it is easy to afford small cars. Similarly, those who belongs to upper-middle class they can afford premium range cars easily. However they avoid registering their cars in the Uttar Pradesh as the taxes and levis are too high. For them registering the cars in neighbouring states is easy. They have to show their address proof, which is easily available there.We have stopped providing temporary registrations, said RTO VK Sonakiya. Those who want to register their vehicles outside, they have to show the permanent address of the same state. It is true that taxes in neighbouring states are lower than UP, but we are unable to change the policies, added Sonakiya. Only administration and transport authorities can change the policies. Whatever may be, the main cause of avoiding the registration in the state is harsh policies and the levis fixed by state authorities. At local level we always try to resolve this problem and generate more and more revenue, he added.